शनिवार, 23 जनवरी 2010

शमशान के सन्नाटे में ......

शमशान के सन्नाटे में नीरवता ,
नि
:स्तब्धता
को भंग करके आती हुई पदचापें,
रुदन ,क्रंदन ,सिसकियाँ ,हिचकियाँ
के साथ आती परछाईयाँ ,
तरह तरह से ज़िंदगी के अंत हैं ,
यहाँ पहुँच कर तो सभी संत हैं

कैसे कौन जानेगा, कौन है कौन ?
लोग अनुत्तरित ,प्रश्न हैं मौन ....

नि:स्पंदन वजूद, नि:स्पंदन काया ,
मोह तो तब तक था ,जब तक थी माया ,
ज्ञान का आदित्य चहुँ ओर है छाया ,
शमशान के सन्नाटे में, सन्नाटा है छाया ।

कुछ पलों के लिए ही सही ,
ज़िंदगी ठहरी... अब है,
खामोशी, नीरवता ,स्तब्धता तो तब है ,
पानी ,हवा ,सांस रूकी हुई जब है |
ज़िंदगी है तो ये सब है ,
कौन जाने किसकी मौत खड़ी कब है ?

शमशान के सन्नाटे में ..
अपनी बारी का इंतजार करते लोग ,
न जाने कैसे -कैसे ज़िंदगी को रहे हैं भोग ...

निश्छल चिता पर लेटा शव ,
निश्चल मासूम मन के साथ शव को घेरे लोग,
शव को घेरे भीड़ में चुपचाप खड़े लोग ,
और न जाने क्या-क्या लगातार बोलता डोम,
जिंदगियों को ज़िंदगी के लिए आख़िरी करना है होम ...

दो पल के लिए ही सही ज़िंदगी ठहरी अब है ,
किसी के दिमाग में विचार ये अब है ,
न जाने किसकी मौत खड़ी कब है ??

शमशान के सन्नाटे में,
यही मन में भाया ,
क्या इसी का नाम मोह था ,
इसी का नाम माया ?

शमशान के सन्नाटे में ......

आत्मकथ्य:- यह कविता शमशान में बैठकर लिखी गयी है

सोमवार, 18 मई 2009

मै खड़ा ही रहा....

मै खड़ा ही रहा.., पूछता पूछता...
उसने नज़रें झुकाई,जवाब हो गया ||

फलसफा ही पढ़ा था, सफा दर सफा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया ||

मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||

मै तरसता.. रहा... अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||

दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे....
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया ||

मै खड़ा ही रहा ......


मंगलवार, 17 मार्च 2009

फूलोँ की क्यारियों में ......मेरे ख्वाब ..

फूलों की क्यारियों में ,
हाथों में ले के हाथ |
नज़रों में ख्वाब ले के,
मह्केगें साथ साथ |

चाँदी की होंगी रातें ,
महुए की होगी छाँव |
वो दिलरुबा के वादों ,
कसमों का होगा साथ ||

एकांत में हो बातें ,
दरिया का हो किनारा |
बरसा करें घटाएं ,
अच्छा है उनका साथ ||

अरमाँ उन्हें बताएं ,
गोदी में रख के माथ |
अधरों पे प्यास ले के ,
दहकेंगे साथ -साथ ||

पलकें हों ऐसे भारी ,
बोझिल फलों से डाली |
झूमेगा जब भी ये मन ,
बहकेंगे साथ -साथ ||

हो चाँदनी भी रौशन ,
वो जब भी पास आयें |
जी भर करेंगे बातें ,
चहकेंगे साथ- साथ ||

मेरे ख्वाब उनको
लायेंगे मेरे साथ -साथ....
फूलों की क्यारियों में ,
हम होंगे साथ -साथ .......

मंगलवार, 17 फ़रवरी 2009

मेरे ख्वाब तुझको लाते .....


मेरे ख्वाब तुझको लाते ,
हैं मेरे आस -- पास ..
हर ख्वाब से मै पूछूं ,
यूं तू ही क्यूँ है ख़ास ॥

क्यूँ दूर रहती मुझसे ,
मेरे दिल में तेरा वास ..
ख़्वाबों में गुमशुदा हो ,
इस गम में हूँ उदास ॥

तेरा रोम-रोम महके,
सुरभित है उच्छ्वास ..
ख़्वाबों में इस तरह ,
तू आये मेरे पास ॥

पंखों से हल्के हो के ,
उड़ने की ले के आस ..
फूलों की क्यारियों में ,
हम होंगे आस--पास ॥

इक ख्वाब का समुंदर ,
इक दर्दे-दिल हो पास ..
मै डुबकी लेता जब भी ,
मुझको हो तेरा भास ॥

मेरे ख्वाब तुझको लाते .........

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

धोखा देते हैं वो इरादों को

धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं ...
दिन तो तंग पड़ता इन ख़्वाबों को ,
इसलिए उनकी नज़र -रातें हैं ...
दूर रखते हैं ख़ुद से ख़्वाबों को ,
यूं भी वो दिल पे असर-ढाते हैं ...
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को ,
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
ज़ुबां क्यूँ नाम दे गुनाहों को ,
बेजुबाँ यूं भी बशर -भाते हैं ...
भूल के जाम के किनारों को,
डूब अन्दर क्यूँ नज़र -आते हैं ...
नज़रें जब जाम दें पनाहों को ,
रह गयी होगी क़सर - बातें हैं ...
धोखा देते हैं , वो, इरादों को .........

रविवार, 14 दिसंबर 2008

कैसे सिखाऊँ तुमको ..

हमने वफ़ा भी सीखी , तुमने सुकूँ ना पाना ,
कैसा अजीब लगता है,तुमको दिल लगाना |
इस शहर की बाँहों में , निकलोगे राहों में ,
बैठा है इक सवाली , तेरे नाम का दीवाना |
कैसे यकीन करोगे ,इस दिल की चाहतों पे ,
तेरे नाम से है रोशन , वरना है वीराना |
जब से कहीं मिले हो , रुख पे बढ़ी है लाली ,
आँखें झुकी हुई हैं , नूर हुआ नज़राना |
तेरे कदम से रोशन , होगा गरीबखाना ,
आदत सी हो गयी है,जी भर के तडपाना |
दर-दर की ठोकरें जो ,तेरे नाम पे हैं खायीं,
ज़ाहिर तो तब करेंगे , आओ गरीबखाना |
चाहो तो मत संवारो ,मेरा नसीब दिलबर ,
तुझको ही मै तो जानूँ , बाकी हूँ अन्जाना |
ना चाहो तो ना आओ , हमदम गरीबखाना ,
कैसे सिखाऊँ तुमको , वादों का अब निभाना |
हमने वफ़ा भी सीखी .........



मंगलवार, 18 नवंबर 2008

मेरा आईना उनका दीवाना हो गया

आईने के सामने बैठाया उन्हें ,
मेरा आईना उनका दीवाना हो गया ।
लम्हा लम्हा समेटा था मैने कभी ,
जो बिख्ररा था, वो, अफ़साना हो गया।
गैरों की इनायत किससे कहें ,
जो अपना था ,वो, अन्जाना हो गया ।
सारी रात, कटी मेरी, आंखों में ,
यूं कयामत उनका सपना आना हो गया ।
यूँ तो शरमो हया के परदे थे ,
पलकॊं से , उनका,झपकाना खो गया ।
अरमाँ मचले,और फ़िर दिल में रहे ,
बेईमान था मौसम , सुहाना हो गया ।
हम किस की शिकायत किससे करें ,
दिल अपना था वो बेगाना हो गया ॥
मेरा आईना उनका दीवाना हो गया ,
मेरा आईना उनका दीवाना ...........