रविवार, 5 अक्तूबर 2008

तुझे ढूँढता हूँ मैं

मेरे दिल दिमाग पर ही , छाया है तेरा वजूद |
मै जगता हूँ या हूँ सोता , तुझे ढूँढता हूँ मै ||

न जाने किस तरह से , तूने ले लिया मेरा नाम |
उस नाम की ध्वनि में , तुझे ढूँढता हूँ मै ||

रातों को अक्सर आते , ही हैं तेरे अक्स और ख्वाब |
सुबह को आंख खुलने पर , तुझे ढूँढता हूँ मैं ||

ठंडी हवा की खुशबू में, कुछ है तेरा अहसास |
उस खुशबू और खुमारी में , तुझे ढूँढता हूँ मैं ||

काली और स्याह रातों , को जो ख़त्म करेगी |
सुंदर , सुनहरी किरणों में , तुझे ढूँढता हूँ मैं ||

धरती पे बिछ गयी है, चादर जो चांदनी |
उस चांदनी की रोशनी में , तुझे ढूँढता हूँ मैं ||

मेरे दिल के सागरों में , तेरा नाम देता लहरें |
लहरों की वादियों में , तुझे ढूँढता हूँ मैं ||

मेरे दिल दिमाग पर ही .........

शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

इक शमा और


प्यास महफ़िल की बुझा लूँ तो कहीं और चलूँ
इक शमा और जला लूँ तो कहीं और चलूँ |
झलक महबूब की है मेरे जो ख्वाबों में रही ,
दिले नादां में बसा लूँ तो कहीं और चलूँ |
ये ज़िन्दगी मेरी, देती है रंगी सपने ,
सूनी आँखों में बसा लूँ तो कहीं और चलूँ |
मिलन के बाद बिछड़ने के विरह की ये व्यथा ,
भीगी पलकों में छिपा लूँ तो कहीं और चलूँ |
मुकुट उंगली के तेरे नर्म हंसी पोरों का ,
बिखरी जुल्फों में सजा लूँ तो कहीं और चलूँ |
भटके हुये ख्वाब सजा लूँ तो कहीं और चलूँ,
एक ग़ज़ल और सुना लूँ तो कहीं और चलूँ |
"अनुपम " सपने हैं तेरे आँचल में ,
ख्वाब आंखों में सजा लूँ तो कहीं और चलूँ |
इक शमा और .........
अनुपम अग्रवाल