सोमवार, 18 मई 2009

मै खड़ा ही रहा....

मै खड़ा ही रहा.., पूछता पूछता...
उसने नज़रें झुकाई,जवाब हो गया ||

फलसफा ही पढ़ा था, सफा दर सफा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया ||

मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||

मै तरसता.. रहा... अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||

दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे....
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया ||

मै खड़ा ही रहा ......