सोमवार, 18 मई 2009

मै खड़ा ही रहा....

मै खड़ा ही रहा.., पूछता पूछता...
उसने नज़रें झुकाई,जवाब हो गया ||

फलसफा ही पढ़ा था, सफा दर सफा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया ||

मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||

मै तरसता.. रहा... अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||

दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे....
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया ||

मै खड़ा ही रहा ......


34 टिप्‍पणियां:

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||

अनुपम जी, बहुत ही लाजवाब रचना.

रामराम.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा रचना!!

P.N. Subramanian ने कहा…

लीजिये हम भी खड़े हो गए आपकी इस कृति को पढ़ कर (Standing Ovation). बहुत सुन्दर. आभार.

मयंक ने कहा…

था बहुत बोलता मैं हर एक बात पर
उसकी इक बात पे लाजवाब हो गया

Urmi ने कहा…

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने! लिखते रहिये!

रंजना ने कहा…

वाह ! सुन्दर रचना....

daanish ने कहा…

मै तरसता.. रहा... अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||

बहुत उम्दा कलाम
एक बहुत अछि रचना
बधाई

---मुफलिस---

दिगम्बर नासवा ने कहा…

मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||

Vaah........kisi ki muskuraahat...schmuch jaadoo kar deti hai...lajawaab sher

दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे....
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया

Aisaa bhi aksar hota hai....jise aap chaahte hain.....apna dil bhi apne khilaaf ho jaata hai

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

भाई अनुपम जी,

लगभग एक माह बाद आपकी कोई रचना पढने को मिली और वह भी इतनी शशक्त कि

मै खड़ा ही रहा.., पूछता पूछता...
उसने नज़रें झुकाई,जवाब हो गया ||

'वाह' कहे बिना रहा न जाये.

सादगी और सम्मान की ऐसी सुन्दर मिसाल और क्या हो सकती है.

बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

RAJ SINH ने कहा…

वाह अनुपम जी क्या कहने !

मेरा दिल...., मेरे खिलाफ़ हो गया .

क्या किया जाये ...........ये दिल है कि मानता नहीं .
यहां तो बगावत पे उतर आया है ......अब दिल से मत लडिये और ना उस्मे इतना डूब जायिये कि महिनों का हिसाब देना पडे आप्को............जैसे कि

लिखा था हमने उन्हें एक खत जवानी मे
अब बुढापे मे जाके जबाब आ गया !!

अब जियादा इन्तेज़ार ना करायियेगा .......!

Yogesh Verma Swapn ने कहा…

मै तरसता.. रहा... अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||

wah aggarwal ji, bahut khoob kahi gazal, badhai sweekaren.

अभिषेक मिश्र ने कहा…

दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे....
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया ||

सभी पंक्तियाँ बहुत ही सुन्दर. बधाई.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

waah...

vijay kumar sappatti ने कहा…

anupam ji , kya khoob kaha hai , wah ji wah
मै तरसता.. रहा... अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||

sir ji mera salaam hai apke lekhan ko ..

padhkar bahut khushi hui siir ji ..

aapko meri dil se badhai ..

meri nayi kavita padhkar apna pyar aur aashirwad deve...to khushi hongi....

vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com

Prem Farukhabadi ने कहा…

फलसफा ही पढ़ा था, सफा दर सफा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया ||

पूरी रचना कमाल की.बधाई.

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया||

यह लाइन तो दिल ही ले गई!

sandhyagupta ने कहा…

Bahut achche.

Asha Joglekar ने कहा…

मै तरसता.. रहा... अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||


बेहद खूबसूरत ।

Puneet Sahalot ने कहा…

bahut hi achha... :)
"मै तरसता.. रहा... अपनी पहचान को ,
उसने नाम लिया , तो खिताब हो गया ||"

दर्पण साह ने कहा…

मैंने उम्र गुज़ारी ,उनके इंतजार में
वो मुस्कुरा जो दिए तो हिसाब हो गया ||


....wah , wah,,

...bahut gerhi baat keh di aapne !!

Satish Saxena ने कहा…

क्या गज़ब लिखा है अनुपम भाई , अपने ब्लॉग पर उद्धृत करने की इजाज़त चाहूँगा ! बहुत दिन बाद आपय आपके ब्लाग पर , मगर मज़ा आगया ! शुभकामनायें

Satish Saxena ने कहा…

जिन्दगी का लिंक "मेरे गीत" पर देकर गौरवान्वित हूँ !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

फलसफा ही पढ़ा था, सफा दर सफा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया
वाह अनुपम जी वाह...रचना भी आपके नाम के अनुरूप ही है...उत्तम...बहुत सादी जबान में दिल की बात कही है आपने... बहुत बहुत बधाई...
इतना कम क्यूँ लिखते हैं आप...लिखते रहिये..आपको पढना एक सुखद अनुभव है...
नीरज

बवाल ने कहा…

फ़लसफ़ा ही पढ़ा था, सफ़ा दर सफ़ा,
उसने जो लिख दिया ,वो किताब हो गया ||
अहा ! क्या बात कही अनुपम साहब ! बिल्कुल फ़िट और हिट। देर से पहुँचने के लिए मुआफ़ करें। रिगार्ड्स।

बेनामी ने कहा…

Hello Uncle
this is Vaibhav.Wow you are popular.Great poems.

Regards.

sandeep sharma ने कहा…

दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे....
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया

bahut hi khoobsurat rachna hai..

hindustani ने कहा…

बहूत अच्छी रचना. कृपया मेरे ब्लॉग पर पधारे

स्वाति ने कहा…

मै खड़ा ही रहा.., पूछता पूछता...
उसने नज़रें झुकाई,जवाब हो गया ||

नज़र भर के उसने मुझे क्या देखा ,
दिल मेरा बाग़ -बाग़ हो गया ||

सुन्दर ,लाजवाब रचना.

sandeep sharma ने कहा…

बहुत लाजवाब, सुन्दर रचना...

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

इष्ट मित्रों एवम कुटुंब जनों सहित आपको दशहरे की घणी रामराम.

Satish Saxena ने कहा…

क्या अंदाज़ है भाई जी ! दीपावली की शुभकामनायें !!

RAJ SINH ने कहा…

चलिए मान लिया हमारी इल्तिजा में कोई कमी रही होगी . आप इन्तीज़ार ही कराये जा रहे हैं ........

लेकिन दीप पर्व की शुभकामनायें तो लें . हर उजाला आपको मुबारक हो !

Ashish (Ashu) ने कहा…

वाह ,वाह
दिल से मैंने, ये चाहा,भुलाऊँ उसे....
मेरा दिल ही.., मेरे ख़िलाफ़ हो गया ||
...बहुत ही उम्दा रचना है।बहुत सुन्दर लिखी है।

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना
बहुत बहुत बधाई .....