शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

धोखा देते हैं वो इरादों को

धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं ...
दिन तो तंग पड़ता इन ख़्वाबों को ,
इसलिए उनकी नज़र -रातें हैं ...
दूर रखते हैं ख़ुद से ख़्वाबों को ,
यूं भी वो दिल पे असर-ढाते हैं ...
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को ,
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
ज़ुबां क्यूँ नाम दे गुनाहों को ,
बेजुबाँ यूं भी बशर -भाते हैं ...
भूल के जाम के किनारों को,
डूब अन्दर क्यूँ नज़र -आते हैं ...
नज़रें जब जाम दें पनाहों को ,
रह गयी होगी क़सर - बातें हैं ...
धोखा देते हैं , वो, इरादों को .........

रविवार, 14 दिसंबर 2008

कैसे सिखाऊँ तुमको ..

हमने वफ़ा भी सीखी , तुमने सुकूँ ना पाना ,
कैसा अजीब लगता है,तुमको दिल लगाना |
इस शहर की बाँहों में , निकलोगे राहों में ,
बैठा है इक सवाली , तेरे नाम का दीवाना |
कैसे यकीन करोगे ,इस दिल की चाहतों पे ,
तेरे नाम से है रोशन , वरना है वीराना |
जब से कहीं मिले हो , रुख पे बढ़ी है लाली ,
आँखें झुकी हुई हैं , नूर हुआ नज़राना |
तेरे कदम से रोशन , होगा गरीबखाना ,
आदत सी हो गयी है,जी भर के तडपाना |
दर-दर की ठोकरें जो ,तेरे नाम पे हैं खायीं,
ज़ाहिर तो तब करेंगे , आओ गरीबखाना |
चाहो तो मत संवारो ,मेरा नसीब दिलबर ,
तुझको ही मै तो जानूँ , बाकी हूँ अन्जाना |
ना चाहो तो ना आओ , हमदम गरीबखाना ,
कैसे सिखाऊँ तुमको , वादों का अब निभाना |
हमने वफ़ा भी सीखी .........