धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं ...
दिन तो तंग पड़ता इन ख़्वाबों को ,
इसलिए उनकी नज़र -रातें हैं ...
दूर रखते हैं ख़ुद से ख़्वाबों को ,
यूं भी वो दिल पे असर-ढाते हैं ...
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को ,
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
ज़ुबां क्यूँ नाम दे गुनाहों को ,
बेजुबाँ यूं भी बशर -भाते हैं ...
भूल के जाम के किनारों को,
डूब अन्दर क्यूँ नज़र -आते हैं ...
नज़रें जब जाम दें पनाहों को ,
रह गयी होगी क़सर - बातें हैं ...
धोखा देते हैं , वो, इरादों को .........
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
38 टिप्पणियां:
अनुपम जी नमस्कार,
बहोत ही खुबसूरत कविता ,बहोत खूब.... ढेरो बधाई ......
अर्श
वाह अनुपम जी, लाजवाब बात कही!
धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
कमाल की बातें लिखीं हैं अनुपम जी . बधाई स्वीकारें .
उठाते हैं जब भी कलम हाथों में
दिल की लिखते हैं कहर ढाते हैं
कहर ध दिया अनुपम जी !
anupam ji , bahut khoob, aapne to kamal kar diya , is gazal mein zindagi ki vastivikta chupi hui hai .. wah wah....
धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
behtareen .......
aapko bahut badhai ..
aap bahut dino se mere blog par nahi aaye.. aapke pyar ki raah dekh rahi hai meri nazmen...
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
नया साल आपको मंगलमय हो
एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें
आपको एवं समस्त मित्र/अमित्र इत्यादी सबको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऎं.
ईश्वर से कामना करता हूं कि नूतन वर्ष में सब लोग एक सुदृड राष्ट्र एवं समाज के निर्माण मे अपनी महती भूमिका का भली भांती निर्वहण कर सकें.
यूं भी वो दिल पे असर-ढाते हैं ...
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को
Acchi lagi panktiyan aapki. Swagat.
padhkar bahut achha laga...
दूर रखते हैं ख़ुद से ख़्वाबों को ,
यूं भी वो दिल पे असर-ढाते हैं ...
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को ,
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
Puneet Sahalot
http://imajeeb.blogspot.com
धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं
bahut hi achchha likha hai aapane.
badhai.
नववर्ष की शुभकामनाएँ
NAV VARSH 2009
KI HAARDIK SHUBH KAAMNAAYE .
---MUFLIS---
बड़ा अच्छा लिखा है अनुपम जी आपने........
धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं
वाह ...! बहोत खूब....
नववर्ष की शुभकामनाएँ...
bahut achchhi kavita hai. naye saal ki badhaiyan
बढ़िया रचना अग्रवाल जी वाह वाह,
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाऍं।
बहुत खूब ! नए वर्ष की शुभकामनायें अनुपम भाई !
भूल के जाम के किनारों को,
डूब अन्दर क्यूँ नज़र -आते हैं ...
नज़रें जब जाम दें पनाहों को ,
रह गयी होगी क़सर - बातें हैं ...
धोखा देते हैं , वो, इरादों को .......
bahut khoob.......
Wah dada wah.......
अच्छा है
बहुत बढ़िया-अच्छी लगी रचना-बधाई.
नववर्ष शुभ हो.
बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने। बधाई।
anupam jee sampoornata se kah bhee dete hain aur sath hee " rah gayee hogee kasar -baten hain ? kya andaaz hain .hame aap padhate hee rahiye .
protsahan ke liye alag se dhanyavad !
bahut kubsurat khyal hae. humne tu aaj pahali baar yaha aaye..buhut hi accha liktae hae aap...baut bahut mubarakbad
बहुत बुरी बात है इरादों को धोखा देना
वाह वाह अनुपम साहब !
क्या कहना वाक़ई ज़ोरदार ग़ज़ल पढ़ी आपने, ज़बान का बेहतरीन इस्तेमाल है इसमें और लम्बी बहर की ये अनुपम कृति है.
कई दिनों से नई पोस्ट नहीं आई आपकी. स्वागत.
(gandhivichar.blogspot.com)
आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!
इन रचनाओं के लिए साधुवाद .मुंबई के वीर्रों के लिए एक गीत लिखा है मैंने अपने ब्लॉग पर ,वक्त हो तो पढियेगा
वाह अनुपम जी dil ko kagaj per bhoot khob utara
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को ,
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
ज़ुबां क्यूँ नाम दे गुनाहों को ,
बेजुबाँ यूं भी बशर -भाते हैं ...
बेहद खूबसूरत गज़ल ।
बहुत खूब अनुपम जी !!!!!!!!!
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
ज़ुबां क्यूँ नाम दे गुनाहों को ,
अरे सर बहुत बेहतरीन ग़ज़ल है पर अब तो एक महीने के ऊपर हो गया अब तो वापस आइएगा। इंतज़ार में।
बहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !
hello uncle!!!! really nice poems... :)
एक टिप्पणी भेजें