शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

धोखा देते हैं वो इरादों को

धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं ...
दिन तो तंग पड़ता इन ख़्वाबों को ,
इसलिए उनकी नज़र -रातें हैं ...
दूर रखते हैं ख़ुद से ख़्वाबों को ,
यूं भी वो दिल पे असर-ढाते हैं ...
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को ,
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
ज़ुबां क्यूँ नाम दे गुनाहों को ,
बेजुबाँ यूं भी बशर -भाते हैं ...
भूल के जाम के किनारों को,
डूब अन्दर क्यूँ नज़र -आते हैं ...
नज़रें जब जाम दें पनाहों को ,
रह गयी होगी क़सर - बातें हैं ...
धोखा देते हैं , वो, इरादों को .........

38 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

अनुपम जी नमस्कार,
बहोत ही खुबसूरत कविता ,बहोत खूब.... ढेरो बधाई ......


अर्श

Vinay ने कहा…

वाह अनुपम जी, लाजवाब बात कही!

धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...

विवेक सिंह ने कहा…

कमाल की बातें लिखीं हैं अनुपम जी . बधाई स्वीकारें .

मयंक ने कहा…

उठाते हैं जब भी कलम हाथों में
दिल की लिखते हैं कहर ढाते हैं

कहर ध दिया अनुपम जी !

vijay kumar sappatti ने कहा…

anupam ji , bahut khoob, aapne to kamal kar diya , is gazal mein zindagi ki vastivikta chupi hui hai .. wah wah....

धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...

behtareen .......

aapko bahut badhai ..

aap bahut dino se mere blog par nahi aaye.. aapke pyar ki raah dekh rahi hai meri nazmen...

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

BrijmohanShrivastava ने कहा…

नया साल आपको मंगलमय हो

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

एक अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें

आपको एवं समस्त मित्र/अमित्र इत्यादी सबको नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऎं.
ईश्वर से कामना करता हूं कि नूतन वर्ष में सब लोग एक सुदृड राष्ट्र एवं समाज के निर्माण मे अपनी महती भूमिका का भली भांती निर्वहण कर सकें.

अभिषेक मिश्र ने कहा…

यूं भी वो दिल पे असर-ढाते हैं ...
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को
Acchi lagi panktiyan aapki. Swagat.

Puneet Sahalot ने कहा…

padhkar bahut achha laga...

दूर रखते हैं ख़ुद से ख़्वाबों को ,
यूं भी वो दिल पे असर-ढाते हैं ...
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को ,
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...

Puneet Sahalot

http://imajeeb.blogspot.com

Bahadur Patel ने कहा…

धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं

bahut hi achchha likha hai aapane.
badhai.

Vinay ने कहा…

नववर्ष की शुभकामनाएँ

daanish ने कहा…

NAV VARSH 2009

KI HAARDIK SHUBH KAAMNAAYE .

---MUFLIS---

art ने कहा…

बड़ा अच्छा लिखा है अनुपम जी आपने........

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

धोखा देते हैं वो इरादों को ,
झूठी क़समें वो अगर -खाते हैं ...
रोशन करते हैं वो चिरागों को ,
रातों को जब भी नज़र -आते हैं

वाह ...! बहोत खूब....

नववर्ष की शुभकामनाएँ...

shelley ने कहा…

bahut achchhi kavita hai. naye saal ki badhaiyan

Prakash Badal ने कहा…

बढ़िया रचना अग्रवाल जी वाह वाह,
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।

कडुवासच ने कहा…

...नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ ।

admin ने कहा…

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाऍं।

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब ! नए वर्ष की शुभकामनायें अनुपम भाई !

डॉ .अनुराग ने कहा…

भूल के जाम के किनारों को,
डूब अन्दर क्यूँ नज़र -आते हैं ...
नज़रें जब जाम दें पनाहों को ,
रह गयी होगी क़सर - बातें हैं ...
धोखा देते हैं , वो, इरादों को .......

bahut khoob.......

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

Wah dada wah.......

वर्षा ने कहा…

अच्छा है

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत बढ़िया-अच्छी लगी रचना-बधाई.

नववर्ष शुभ हो.

Ashok Pandey ने कहा…

बहुत सुंदर रचना लिखी है आपने। बधाई।

RAJ SINH ने कहा…

anupam jee sampoornata se kah bhee dete hain aur sath hee " rah gayee hogee kasar -baten hain ? kya andaaz hain .hame aap padhate hee rahiye .

protsahan ke liye alag se dhanyavad !

इरशाद अली ने कहा…

bahut kubsurat khyal hae. humne tu aaj pahali baar yaha aaye..buhut hi accha liktae hae aap...baut bahut mubarakbad

BrijmohanShrivastava ने कहा…

बहुत बुरी बात है इरादों को धोखा देना

बवाल ने कहा…

वाह वाह अनुपम साहब !
क्या कहना वाक़ई ज़ोरदार ग़ज़ल पढ़ी आपने, ज़बान का बेहतरीन इस्तेमाल है इसमें और लम्बी बहर की ये अनुपम कृति है.

अभिषेक मिश्र ने कहा…

कई दिनों से नई पोस्ट नहीं आई आपकी. स्वागत.
(gandhivichar.blogspot.com)

Amit Kumar Yadav ने कहा…

आपकी रचनाधर्मिता का कायल हूँ. कभी हमारे सामूहिक प्रयास 'युवा' को भी देखें और अपनी प्रतिक्रिया देकर हमें प्रोत्साहित करें !!

Vijay Kumar ने कहा…

इन रचनाओं के लिए साधुवाद .मुंबई के वीर्रों के लिए एक गीत लिखा है मैंने अपने ब्लॉग पर ,वक्त हो तो पढियेगा

hindustani ने कहा…

वाह अनुपम जी dil ko kagaj per bhoot khob utara
लम्हा-लम्हा भुला के यादों को ,
लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
ज़ुबां क्यूँ नाम दे गुनाहों को ,
बेजुबाँ यूं भी बशर -भाते हैं ...

कडुवासच ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Asha Joglekar ने कहा…

बेहद खूबसूरत गज़ल ।

विक्रांत बेशर्मा ने कहा…

बहुत खूब अनुपम जी !!!!!!!!!

बवाल ने कहा…

लम्हा -लम्हा वो ख़बर -पाते हैं ...
ज़ुबां क्यूँ नाम दे गुनाहों को ,
अरे सर बहुत बेहतरीन ग़ज़ल है पर अब तो एक महीने के ऊपर हो गया अब तो वापस आइएगा। इंतज़ार में।

Urmi ने कहा…

बहुत बढिया!! इसी तरह से लिखते रहिए !

anonymous03 ने कहा…

hello uncle!!!! really nice poems... :)