शनिवार, 23 जनवरी 2010

शमशान के सन्नाटे में ......

शमशान के सन्नाटे में नीरवता ,
नि
:स्तब्धता
को भंग करके आती हुई पदचापें,
रुदन ,क्रंदन ,सिसकियाँ ,हिचकियाँ
के साथ आती परछाईयाँ ,
तरह तरह से ज़िंदगी के अंत हैं ,
यहाँ पहुँच कर तो सभी संत हैं

कैसे कौन जानेगा, कौन है कौन ?
लोग अनुत्तरित ,प्रश्न हैं मौन ....

नि:स्पंदन वजूद, नि:स्पंदन काया ,
मोह तो तब तक था ,जब तक थी माया ,
ज्ञान का आदित्य चहुँ ओर है छाया ,
शमशान के सन्नाटे में, सन्नाटा है छाया ।

कुछ पलों के लिए ही सही ,
ज़िंदगी ठहरी... अब है,
खामोशी, नीरवता ,स्तब्धता तो तब है ,
पानी ,हवा ,सांस रूकी हुई जब है |
ज़िंदगी है तो ये सब है ,
कौन जाने किसकी मौत खड़ी कब है ?

शमशान के सन्नाटे में ..
अपनी बारी का इंतजार करते लोग ,
न जाने कैसे -कैसे ज़िंदगी को रहे हैं भोग ...

निश्छल चिता पर लेटा शव ,
निश्चल मासूम मन के साथ शव को घेरे लोग,
शव को घेरे भीड़ में चुपचाप खड़े लोग ,
और न जाने क्या-क्या लगातार बोलता डोम,
जिंदगियों को ज़िंदगी के लिए आख़िरी करना है होम ...

दो पल के लिए ही सही ज़िंदगी ठहरी अब है ,
किसी के दिमाग में विचार ये अब है ,
न जाने किसकी मौत खड़ी कब है ??

शमशान के सन्नाटे में,
यही मन में भाया ,
क्या इसी का नाम मोह था ,
इसी का नाम माया ?

शमशान के सन्नाटे में ......

आत्मकथ्य:- यह कविता शमशान में बैठकर लिखी गयी है

26 टिप्‍पणियां:

मयंक ने कहा…

देर आए दुरुस्त आए....
अनुपम जी का पुनः स्वागत है ब्लॉग जगत में

राज भाटिय़ा ने कहा…

शमशान के सन्नाटे में ..
अपनी बारी का इंतजार करते लोग ,
न जाने कैसे -कैसे ज़िंदगी को रहे हैं भोग ...
अनुपम जी एक सचाई है आप की इस कविता मै.
धन्यवाद

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

शमशान के सन्नाटे में,
यही मन में भाया ,
क्या इसी का नाम मोह था ,
इसी का नाम माया ?


बहुत यथार्थवादी रचना है. शुभकामनाएं.

रामराम.

दिगम्बर नासवा ने कहा…

शमशान के सन्नाटे में,
यही मन में भाया ,
क्या इसी का नाम मोह था ,
इसी का नाम माया ?...

सत्य और यथार्थ की धरातल पर लिखी अच्छी रचना ........ से के करीब लिखा है ..........

बवाल ने कहा…

ज़िंदगी के शाश्वत और अकाट्य सत्य को उजागर करती हुई यह आपकी हमेशा की तरह अनमोल कृति है आदरणीय अनुपम जी।

Asha Joglekar ने कहा…

जिंदगी का यथार्थ । मौत एक सत्य है पर हम इसको श्मसान में जाकर ही मानने लगते हैं जैसे ही उससे बाहर निकलते हैं यह क्षणिक वैराग भी खत्म हो जाता है । फिर हम सोचने लगते हैं कि ये सब तो किसी और के साथ होता है ।

Urmi ने कहा…

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे बाकि ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है!
बहुत खूबसूरत रचना लिखा है आपने! गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें!

RAJ SINH ने कहा…

देर लगी आने में तुमको ,शुक्र ये है की आये तो ..........
लगता है शमशान साधना में रत थे .
तो उसका सुफल इस कविता की गहराई और उसकी सोच से उजागर ही हो रहा है .

बधाई !

daanish ने कहा…

zindgi ke phalasphe ko
steek shabdoN meiN bayaan
karti huee sachchee rachnaa .

Satish Saxena ने कहा…

कुछ अलग सा! होली और मिलाद उन नबी की शुभकामनायें

sandhyagupta ने कहा…

Nishabd hoon....

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

एक अरसे बाद दस्तक दी आपने ......शमशान के ये सन्नाटे एक नसीहत हैं ज़िन्दगी की ..... साथ कुछ नहीं जाता ....और जो हम छोड़ जाते हैं वो कुछ ऐसा हो जिसमें आपके लिए दुआ के चंद लफ्ज़ हों ...बाकि तो ये रुदन ,क्रंदन ,सिसकियाँ ,हिचकियाँ ही बचती हैं .....!!

Parul kanani ने कहा…

anupam ji...aapne rachna mein jindagi ko aaina de diya!

RAJ SINH ने कहा…

भाई मेरे ये भी रूप है आपकी शायिरी का ?

इस बीच .........

दुनियां ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफरेब हैं गम रोज़गार के ...

की हालत रही .
बड़े रोग भी तो पाल रखे हैं .
अक्सर आजकल आप जैसे प्यारों के दर पर लिखा झाँक ले पाता था और दस्तखत किये बिना ही चला जाता था .वैसे मेरा कहा कोई पहले से दर्ज किये रहता था .

आज का रंग हकीकी है .
दिल तो छुआ करते ही थे आज दिल और दिमाग भी .

शुकरान !

RAJ SINH ने कहा…

भाई मेरे ये भी रूप है आपकी शायिरी का ?

इस बीच .........

दुनियां ने तेरी याद से बेगाना कर दिया
तुझसे भी दिलफरेब हैं गम रोज़गार के ...

की हालत रही .
बड़े रोग भी तो पाल रखे हैं .
अक्सर आजकल आप जैसे प्यारों के दर पर लिखा झाँक ले पाता था और दस्तखत किये बिना ही चला जाता था .वैसे मेरा कहा कोई पहले से दर्ज किये रहता था .

आज का रंग हकीकी है .
दिल तो छुआ करते ही थे आज दिल और दिमाग भी .

शुकरान !

नीरज गोस्वामी ने कहा…

शमशान वैराग्य कहते हैं इसे...शमशान से बाहर आते ही फिर से इस दुनिया में खो जाते हैं...बेहतरीन रचना है ये आपकी...मेरी बधाई स्वीकारें...

नीरज

Dr Varsha Singh ने कहा…

सच्चाई को वयां करती हुई अत्यंत मार्मिक रचना , बधाई.

Urmi ने कहा…

टिप्पणी देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

Ankur Jain ने कहा…

sundar rachna...

Asha Joglekar ने कहा…

शमशान तक का प्रवास तो सभी को करना है । एक कडवा सच है आपकी कविता में । आप जो कह रहे हैं उसे स्मशान वैराग्य़ भी कहते हैं । घर वापिस आये और फिर वही माया, मोह, ईर्षा, द्वेष ।

Asha Joglekar ने कहा…

आपकी कविता का सत्य है स्मशान विराग । घर जाते ही फिर शुरु हो जाती है नून तेल लकडी । आदमी को वास्तव का भान दिलाने वाली कविता ।

Satish Saxena ने कहा…

काफी समय से आप लिख नहीं रहे ...शुभकामनायें आपको !

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

कल 25/06/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी http://nayi-purani-halchal.blogspot.in (दीप्ति शर्मा जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बेहद गहन रचना...............

सादर
अनु

Hindi Shayari ने कहा…

नमश्कार अनुपम जी! आपकी कविताएँ काफ़ी सुंदर है| आप सचमुच तारीफ के पात्र है| परंतु आज कल आपने लिखना क्यों बंद कर दिया? आपकी नयी कविताओं का इंतेजार रहेगा|

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

I wish to visit your blog but it says that it is by invitation only